भारतीय डाक कर्मचारी महासंघ के सेक्रेटरी जनरल, संतोष कुमार सिंह ने सरकार के मंहगाई भत्ता फ्रीज करने के आदेश के विरोध में एक कड़ा पत्र भारतीय मजदूर संघ के राष्ट्रीय महामंत्री विरजेश उपाध्याय को लिखा है।
उन्होंने लिखा है कि वर्तमान में डाक कर्मचारी सरकार के साथ कंधा से कंधा मिलाकर जान जोखिम में डालकर जनसेवा में भागीदार बना हुआ है। लेकिन भारत सरकार द्वारा जब सभी को 50 लाख का बीमा दिया गया तो वहीं डाक कर्मचारियों के साथ सौतेला व्यवहार करते हुए उन्हें मात्र 10 लाख का बीमा दिया गया। और अब जब डाककर्मचारी जहां पर डाक कर्मचारी लगातार मेहनत कर रहा है और स्वेच्छा से सरकार को अपने वेतने से 1 दिन का वेतन दान दे चुका है तो इस प्रकार डीए फ्रीज किया जाना बहुत ही निंदनीय है।
उन्होंने अपने पत्र में लिखा कि सरकार के इस निर्णय से केंद्रीय कर्मचारी वित्तीय संकट का सामना करने लगेंगे। कई कर्मचारियों ने तो इसी डीए के बहाने कई तरीके के कार्य कर लेते हैं जिससे उनके ऊपर काफी वित्तीय भार रहता है जिसे वे मंहगाई भत्ता बढ़ने के साथ अपने आपको हल्का महसूस करते हैं, और यदि ऐसा आदेश सरकार का रहता है तो कई कर्मचारी मेंटली रूप से भी हतोत्साहित हांेगे।
सितंबर में जनवरी का डीए और जुलाई का डीए एक साथ दे सकती है सरकार
उन्होंने कहा कि वर्तमान में देश की परिस्थितियां जरूर बदतर हैं और ऐसे में देश की अर्थव्यवस्था पर इसका असर भी पड़ा है लेकिन डीए एवं डीआर फ्रीज करना बिल्कुल ही गलत फैसला है। यदि सरकार ज्यादा ही आर्थिक तंगी से जूझ रही है तो वह जनवरी 2020 का डीए और जुलाई 2020 का डीए का एक साथ भुगतान सितंबर माह से करने का फैसला कर सकती है, इससे कर्मचारियों पर ज्यादा बोझ भी नहीं पड़ेगा और सरकार के खाते में काफी पैसा भी आ जाएगा।
साथ ही जो उक्त 9 महीने का डीए का एरियर बनता है उसे जीपीएफ खाते में डेढ़ साल तक कर्मचारी नहीं निकाल सकेंगे इस प्रावधान के साथ डाल सकते हैं।
उन्होंने सरकार से अपील की कि सरकार अपना यह फैसला बदले और क्योंकि सभी कर्मचारी स्वेच्छा से लगातार अपना एक दिन का वेतन दे चुकें हैं। साथ ही यदि सरकार को आर्थिक व्यवस्था सुधारना है तो इसे स्वैच्छिक रूप में लागू करे कि जो कर्मचारी अपना डीए छोड़ना चाहें वह अपना डीए सरकार को दान कर सकते हैं, लेकिन कर्मचारियों को इसके लिए बाध्य करना सही नहीं है।
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